बटुक भैरव चालीसा
॥दोहा॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय भैरव बटुक त्रिपुरारी।
तुम बिन काल को जीतन हारी॥
जयति वीर अष्टंगी त्राता।
यम डर त्रास मिटावन दाता॥
त्रिनयन धर महाकाल विख्याता।
तुम बिन सब जगत त्रास खाता॥
नमहु तुम्हारो तंत्र कहावे।
तंत्र सिद्धि बिनु सब जग कांपे॥
कृपा करी जयकाल बुलावे।
रघुकुल नायक मार न पावे॥
तुम ही हो यमराज के राजा।
त्रिभुवन ताप मिटावन ताजा॥
सृष्टि नायक नील कंठ राजा।
कृपा करी त्रिपुरासुर ताजा॥
जय महाकाल बटुक तुम हो।
सब जगती भयमुक्त रहो॥
अष्ट भैरव महिमा दिखावो।
सर्व सुख समृद्धि तुम पावो॥
ध्यान धरो महाकाल का।
जय महाकाल जय बटुक दा॥
त्रिभुवन में हर काल को हरने वाले हो।
रक्षक हो सबके तुम, संकट को हरने वाले हो॥
तुम बिन और सहाय न कोई।
भूत पिशाच निकट नहिं कोई॥
संकट हरनी महिमा भारी।
भैरव नाम के अधीकारी॥
सदा सहाय भक्तन के हो।
बटुक चालीसा पढ़ जो हो॥
सम्बत सहस्र दस ऋषि।
पूरण चालीसा का भैरव कृपा हो॥
दोहा
बटुक भैरव की जो कोई चालीसा पाठ करे।
सदा सुखी निश्चय हो, भैरव जी की कृपा धरे॥